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अय्योब की प्रतिक्रिया 
 1 तब अय्योब ने उत्तर दिया: 
 2 “निःसंदेह तुम्हीं हो वे लोग, 
तुम्हारे साथ ही ज्ञान का अस्तित्व मिट जाएगा! 
 3 किंतु तुम्हारे समान बुद्धि मुझमें भी है; 
तुमसे कम नहीं है मेरा स्तर. 
किसे बोध नहीं है इस सत्य का? 
 4 “अपने मित्रों के लिए तो मैं हंसी मज़ाक का विषय होकर रह गया हूं, 
मैंने परमेश्वर को पुकारा और उन्होंने इसका प्रत्युत्तर भी दिया; 
और अब यहां खरा तथा निर्दोष व्यक्ति उपहास का पात्र हो गया है! 
 5 सुखी धनवान व्यक्ति को दुःखी व्यक्ति घृणित लग रहा है. 
जो पहले ही लड़खड़ा रहा है, उसी पर प्रहार किया जा रहा है. 
 6 उन्हीं के घरों को सुरक्षित छोड़ा जा रहा है, जो हिंसक-विनाशक हैं, 
वे ही सुरक्षा में निवास कर रहे हैं, जो परमेश्वर को उकसाते रहे हैं, 
जो सोचते हैं कि ईश्वर अपनी मुट्ठी में है* 12:6 ईश्वर अपनी मुट्ठी में है किंवा जो परमेश्वर के हाथों में है! 
 7 “किंतु अब जाकर पशुओं से परामर्श लो, अब वे तुम्हें शिक्षा देने लगें, 
आकाश में उड़ते पक्षी तुम्हें सूचना देने लगें; 
 8 अन्यथा पृथ्वी से ही वार्तालाप करो, वही तुम्हें शिक्षा दे, 
महासागर की मछलियां तुम्हारे लिए शिक्षक हो जाएं. 
 9 कौन है तुम्हारे मध्य जो इस सत्य से अनजान है, 
कि यह सब याहवेह की कृति है? 
 10 किसका अधिकार है हर एक जीवधारी जीवन पर 
तथा समस्त मानव जाति के श्वास पर? 
 11 क्या कान शब्दों की परख नहीं करता, 
जिस प्रकार जीभ भोजन के स्वाद को परखती है? 
 12 क्या, वृद्धों में बुद्धि पायी नहीं जाती है? 
क्या लंबी आयु समझ नहीं ले आती? 
 13 “विवेक एवं बल परमेश्वर के साथ हैं; 
निर्णय तथा समझ भी उन्हीं में शामिल हैं. 
 14 जो कुछ उनके द्वारा गिरा दिया जाता है, उसे फिर से बनाया नहीं जा सकता; 
जब वह किसी को बंदी बना लेते हैं, असंभव है उसका छुटकारा. 
 15 सुनो! क्या कहीं सूखा पड़ा है? यह इसलिये कि परमेश्वर ने ही जल रोक कर रखा है; 
जब वह इसे प्रेषित कर देते हैं, पृथ्वी जलमग्न हो जाती है. 
 16 वही हैं बल एवं ज्ञान के स्रोत; 
धोखा देनेवाला तथा धोखा खानेवाला दोनों ही उनके अधीन हैं. 
 17 वह मंत्रियों को विवस्त्र कर छोड़ते हैं 
तथा न्यायाधीशों को मूर्ख बना देते हैं. 
 18 वह राजाओं द्वारा डाली गई बेड़ियों को तोड़ फेंकते हैं 
तथा उनकी कमर को बंधन से सुसज्जित कर देते हैं. 
 19 वह पुरोहितों को नग्न पांव चलने के लिए मजबूर कर देते हैं 
तथा उन्हें, जो स्थिर थे, पराजित कर देते हैं. 
 20 वह विश्वास सलाहकारों को अवाक बना देते हैं 
तथा बड़ों की समझने की शक्ति समाप्त कर देते हैं 
 21 वह आदरणीय व्यक्ति को घृणा के पात्र बना छोड़ते हैं. 
तथा शूरवीरों को निकम्मा कर देते हैं. 
 22 वह घोर अंधकार में बड़े रहस्य प्रकट कर देते हैं, 
तथा घोर अंधकार को प्रकाश में ले आते हैं. 
 23 वही राष्ट्रों को उन्नत करते और फिर उन्हें नष्ट भी कर देते हैं. 
वह राष्ट्रों को समृद्ध करते और फिर उसे निवास रहित भी कर देते हैं. 
 24 वह विश्व के शासकों की बुद्धि शून्य कर देते हैं 
तथा उन्हें रेगिस्तान प्रदेश में दिशाहीन भटकने के लिए छोड़ देते हैं. 
 25 वे घोर अंधकार में टटोलते रह जाते हैं 
तथा वह उन्हें इस स्थिति में डाल देते हैं, मानो कोई मतवाला लड़खड़ा रहा हो.