स्तोत्र 111
 1 याहवेह का स्तवन हो. 
मैं संपूर्ण हृदय से याहवेह का स्तवन करूंगा, 
सीधे मनवालों की समिति और सभा में. 
 2 अति उदात्त हैं याहवेह के कृत्य; 
वे उनकी प्रसन्नता का कारण हैं, जो इनको मनन करते हैं. 
 3 महिमामय और भव्य हैं याहवेह के ये कृत्य, 
उनकी धार्मिकता सर्वदा है. 
 4 याहवेह ने अपने इन कृत्यों को अविस्मरणीय बना दिया है; 
वह उदार एवं कृपालु हैं. 
 5 अपने श्रद्धालुओं के लिए वह आहार का प्रबंध करते हैं; 
वह अपनी वाचा सदा-सर्वदा स्मरण रखते हैं. 
 6 उन्होंने अपनी प्रजा पर इन कृत्यों की सामर्थ्य प्रकट कर दी, 
जब उन्होंने उन्हें अन्य राष्ट्रों की भूमि प्रदान की. 
 7 उनके द्वारा निष्पन्न समस्त कार्य विश्वासयोग्य और न्याय के हैं; 
विश्वासयोग्य हैं उनके सभी उपदेश. 
 8 वे सदा-सर्वदा के लिए अटल हैं, 
कि इनका पालन सच्चाई एवं न्याय में किया जाए. 
 9 याहवेह ने अपनी प्रजा का उद्धार किया; 
उन्होंने अपनी वाचा सदा-सर्वदा के लिए स्थापित कर दी है. 
उनका नाम सबसे अलग तथा पवित्र और भय-योग्य है. 
 10 याहवेह के प्रति श्रद्धा बुद्धि का मूल है; 
उन सभी में, जो इसे मानते हैं, उत्तम समझ रहते है. 
याहवेह ही हैं सर्वदा वंदना के योग्य.