62
ख़ामोशी से अल्लाह का इंतज़ार कर 
 1 दाऊद का ज़बूर। मौसीक़ी के राहनुमा के लिए। यदूतून के लिए। 
मेरी जान ख़ामोशी से अल्लाह ही के इंतज़ार में है। उसी से मुझे मदद मिलती है। 
 2 वही मेरी चटान, मेरी नजात और मेरा क़िला है, इसलिए मैं ज़्यादा नहीं डगमगाऊँगा। 
 3 तुम कब तक उस पर हमला करोगे जो पहले ही झुकी हुई दीवार की मानिंद है? तुम सब कब तक उसे क़त्ल करने पर तुले रहोगे जो पहले ही गिरनेवाली चारदीवारी जैसा है? 
 4 उनके मनसूबों का एक ही मक़सद है, कि उसे उसके ऊँचे ओहदे से उतारें। उन्हें झूट से मज़ा आता है। मुँह से वह बरकत देते, लेकिन अंदर ही अंदर लानत करते हैं। (सिलाह) 
 5 लेकिन तू ऐ मेरी जान, ख़ामोशी से अल्लाह ही के इंतज़ार में रह। क्योंकि उसी से मुझे उम्मीद है। 
 6 सिर्फ़ वही मेरी जान की चटान, मेरी नजात और मेरा क़िला है, इसलिए मैं नहीं डगमगाऊँगा। 
 7 मेरी नजात और इज़्ज़त अल्लाह पर मबनी है, वही मेरी महफ़ूज़ चटान है। अल्लाह में मैं पनाह लेता हूँ। 
 8 ऐ उम्मत, हर वक़्त उस पर भरोसा रख! उसके हुज़ूर अपने दिल का रंजो-अलम पानी की तरह उंडेल दे। अल्लाह ही हमारी पनाहगाह है। (सिलाह) 
 9 इनसान दम-भर का ही है, और बड़े लोग फ़रेब ही हैं। अगर उन्हें तराज़ू में तोला जाए तो मिलकर उनका वज़न एक फूँक से भी कम है। 
 10 ज़ुल्म पर एतमाद न करो, चोरी करने पर फ़ज़ूल उम्मीद न रखो। और अगर दौलत बढ़ जाए तो तुम्हारा दिल उससे लिपट न जाए। 
 11 अल्लाह ने एक बात फ़रमाई बल्कि दो बार मैंने सुनी है कि अल्लाह ही क़ादिर है। 
 12 ऐ रब, यक़ीनन तू मेहरबान है, क्योंकि तू हर एक को उसके आमाल का बदला देता है।