यहूदाक पत्र
1
1 हम यहूदा, जे यीशु मसीहक सेवक आ याकूबक भाय छी, अहाँ सभ केँ जे सभ परमेश्वर पिता द्वारा बजाओल गेल छी, हुनकर प्रिय लोक छी आ यीशु मसीहक लेल* 1 वा, “यीशु मसीह द्वारा” वा, “यीशु मसीह मे” सुरक्षित राखल छी, ई पत्र लिखि रहल छी।
2 अहाँ सभ केँ प्रशस्त मात्रा मे दया, शान्ति आ प्रेम भेटय।
सत्य केँ हेर-फेर करऽ वला सभ केँ चिन्हू
3 प्रिय भाइ सभ, अपना सभ जाहि उद्धार मे सहभागी छी, तकरा विषय मे हम अहाँ सभ केँ लिखबाक लेल बहुत उत्सुक छलहुँ, मुदा आब हमरा आवश्यक बुझायल जे एहि पत्र द्वारा हम अहाँ सभ केँ अनुरोध करी जे, जाहि सत्य पर अपना सभ विश्वास करैत छी आ जे सदा कालक लेल एक बेर प्रभुक लोकक जिम्मा मे सौंपल गेल, तकर रक्षाक लेल संघर्ष करू। 4 किएक तँ अहाँ सभक बीच किछु एहन लोक चुप-चाप पैसि गेल अछि जकरा सभक दण्ड-आज्ञाक बारे मे प्राचीन काल मे धर्मशास्त्र मे लिखल गेल। ओ सभ परमेश्वरक डर नहि मानैत अछि, ओ सभ परमेश्वरक कृपा केँ हेर-फेर कऽ कऽ ओकरा कुकर्म करबाक अधिकारक रूप मे मानि लैत अछि, और अपना सभक एकमात्र स्वामी आ प्रभु, अर्थात् यीशु मसीह केँ, अस्वीकार करैत अछि।
5 ओना तँ अहाँ सभ ई बात पहिने सँ जनैत छी, तैयो हम अहाँ सभ केँ स्मरण कराबऽ चाहैत छी जे, प्रभु† 5 किछु अति प्राचीन हस्तलेख सभ मे, “प्रभु”क स्थान मे “यीशु” पाओल जाइत अछि। मिस्र देश सँ इस्राएली लोक सभ केँ मुक्त करा कऽ निकालि लेलनि, मुदा बाद मे ओकरा सभ मे सँ जे सभ विश्वास नहि कयलक, तकरा सभक विनाश कऽ देलनि।‡ 5 प्रस्थान 12:51 और गनती 14:29, 30 केँ देखू। 6 स्वर्गदूतो वला बात केँ मोन पाड़ू—स्वर्गदूत सभ मे सँ जे सभ अपन अधिकारक पद नहि राखि अपन वास स्थान छोड़ि देलक, तकरा सभ केँ परमेश्वर भीषण न्याय-दिनक न्यायक लेल कहियो नहि खुलऽ वला बन्हन मे बान्हि कऽ अन्हार मे राखि देलथिन।§ 6 उत्पत्ति 6:1-4; यशा 14:12-15; 24:21-23 केँ देखू। 7 एही तरहेँ सदोम, गमोरा आ तकरा लग-पासक नगर सभ ओही स्वर्गदूत सभ जकाँ कुकर्म कयलक आ अप्राकृतिक शारीरिक इच्छा सभक पाछाँ दौड़ैत रहल। ओ सभ अनन्त आगिक दण्ड मे पड़ि कऽ आन लोकक लेल उदाहरण बनल अछि।* 7 उत्पत्ति 19:1-25 केँ देखू।
8 ठीक ओही तरहेँ ई सभ जे अहाँ सभक समूह मे आयल अछि, से सभ अपन सपना सभ सँ प्रेरणा पाबि कऽ अपना शरीर केँ अशुद्ध करैत अछि, किनको अधीन मे नहि रहैत अछि आ स्वर्गिक प्राणी सभक निन्दा करैत अछि। 9 प्रधान स्वर्गदूत मिकाएल सेहो जखन मूसाक लासक विषय मे शैतान सँ वाद-विवाद कऽ रहल छलाह, तँ हुनका साहस नहि भेलनि जे शैतान केँ अपमान-जनक शब्द कहि कऽ ओकरा पर दोष लगबथि। ओ मात्र एतबे कहलथिन, “परमेश्वरे तोरा दण्डित करथुन।” 10 मुदा ई लोक सभ जाहि बात सभ केँ नहि बुझैत अछि, तकर विरोध मे बजैत अछि। अविवेकी जानबर सभ जकाँ ई सभ एतबे बुझैत अछि जे शरीर मे कोन बातक लेल इच्छा भऽ रहल अछि, आ सैह बात सभ एकरा सभ केँ नष्ट करतैक।
11 ओकरा सभ केँ धिक्कार छैक! किएक तँ ओ सभ काइनक चालि अपनौने अछि।† 11 (काइन) उत्पत्ति 4:1-8 केँ देखू। ओ सभ बिलाम जकाँ अनुचित लाभक पाछाँ दौड़ि कऽ पथभ्रष्ट भऽ गेल अछि,‡ 11 (बिलाम) गनती 22-24; 31:16 केँ देखू। आ कोरह जकाँ विद्रोह कऽ कऽ नाश भऽ गेल अछि।§ 11 (कोरह) गनती 16:1-35 केँ देखू।
12 ओ सभ अहाँ सभक प्रेम-भोज सभ मे कलंक स्वरूप अछि,* 12 वा, “ओ सभ अहाँ सभक प्रेम-भोज सभ मे समुद्र मे पाओल जाय वला ओहन विशाल खतरनाक पाथर सभ जकाँ अछि जे जहाज केँ नोकसान करैत अछि,” किएक तँ ओ सभ निःसंकोच भऽ खाइत-पिबैत खाली अपने भरण-पोषण केँ ध्यान मे रखैत अछि। ओ सभ ओहन मेघ अछि जे बरसैत नहि अछि आ हवाक प्रवाह सँ एम्हर-ओम्हर उड़ैत रहैत अछि। ओ सभ ओहन गाछ सभ अछि जे फड़बाक समय अयला पर सेहो नहि फड़ैत अछि आ जकरा सभ केँ जड़ि सँ उखाड़ल गेल अछि—ओ सभ दू बेर मरि चुकल अछि। 13 ओ सभ समुद्रक प्रचण्ड लहरि सभ अछि जे अपन लज्जाजनक काजक फेन उझलैत अछि। ओ सभ एम्हर-ओम्हर घुमऽ वला तारा सभ अछि जकरा सभक लेल अन्हार-गुज स्थान अनन्त कालक लेल ठहराओल गेल अछि।
14 हनोक सेहो, जे आदम सँ सातम पीढ़ी मे छलाह,† 14 उत्पत्ति 5:18, 21-24 केँ देखू। एकरा सभक विषय मे भविष्यवाणी कयलनि जे, “देखू, परम-प्रभु अपन असंख्य पवित्र स्वर्गदूतक संग आबि रहल छथि 15 जाहि सँ सभ लोकक न्याय करथि आ अधर्मी सभ जतेक अधर्म कयलक आ धर्मद्रोही पापी सभ प्रभुक विरोध मे जतेक खराब बात बाजल अछि, ताहि सभ बातक लेल ओकरा सभ केँ दोषी ठहरबथि।” 16 एहन लोक सभ कुड़बुड़ाइत रहैत अछि, अनकर दोष तकैत अछि, अपन अधलाह इच्छा सभक अनुसार चलैत अछि, अपन बड़ाइ करैत अछि, आ अपन लाभक लेल लोकक चापलूसी करैत अछि।
विश्वास मे दृढ़ बनल रहू
17 परन्तु यौ प्रिय भाइ सभ, अहाँ सभ ओहि बात केँ मोन राखू जे अपना सभक प्रभु यीशु मसीहक पठाओल दूत सभ अहाँ सभ केँ पहिनहि कहि देने छथि। 18 ओ सभ कहलनि जे, “अन्तिम समय मे एहन ठट्ठा कयनिहार सभ आओत जे परमेश्वरक डर नहि मानि कऽ अपन अधलाह इच्छा सभक अनुसार आचरण करत।” 19 ई सभ ओहन लोक अछि जे मण्डली मे फूट करबैत अछि। ई सभ मात्र एहि संसारक बात सभक बारे मे सोचैत अछि। एकरा सभ मे परमेश्वरक आत्माक वास नहि अछि।
20 मुदा यौ प्रिय भाइ सभ, अहाँ सभ जाहि अति पवित्र सत्य पर विश्वास कयने छी, ताहि मे बलवन्त होइत जाउ, आ परमेश्वरक पवित्र आत्माक शक्ति द्वारा प्रार्थना करैत रहू। 21 अहाँ सभ अपना केँ परमेश्वरक प्रेम मे रखने रहू आ ओहि दिनक बाट तकैत रहू जहिया अपना सभक प्रभु यीशु मसीह अपना दया सँ अहाँ सभ केँ अनन्त जीवन मे लऽ अनताह।
22 जे सभ अपना विश्वास मे डगमगा रहल अछि, तकरा सभ पर दया करू। 23 दोसर सभ केँ आगि मे सँ खीचि कऽ बचाउ। फेर दोसर लोक एहन अछि, जकरा सभ पर दया करैत काल मे सावधान रहबाक अछि; ओकरा सभक ओहि वस्त्र सभ सँ सेहो घृणा करू जे पापी स्वभावक कुकर्म सँ अपवित्र कयल गेल अछि।
एकमात्र परमेश्वरक प्रशंसा होनि!
24 आब, जे अहाँ सभ केँ खसऽ सँ बचा सकैत छथि, अपन महिमामय उपस्थिति मे अहाँ सभ केँ निर्दोष आ अति आनन्दित कऽ कऽ ठाढ़ कऽ सकैत छथि— 25 अर्थात्, अपना सभक उद्धारकर्ता, ओहि एकमात्र परमेश्वर केँ अपना सभक प्रभु यीशु मसीह द्वारा महिमा, गौरव, सामर्थ्य, आ अधिकार होनि; जहिना सनातन काल सँ छनि, तहिना एखनो होनि आ युगानुयुग होइत रहनि! आमीन।
*1:1 1 वा, “यीशु मसीह द्वारा” वा, “यीशु मसीह मे”
†1:5 5 किछु अति प्राचीन हस्तलेख सभ मे, “प्रभु”क स्थान मे “यीशु” पाओल जाइत अछि।
‡1:5 5 प्रस्थान 12:51 और गनती 14:29, 30 केँ देखू।
§1:6 6 उत्पत्ति 6:1-4; यशा 14:12-15; 24:21-23 केँ देखू।
*1:7 7 उत्पत्ति 19:1-25 केँ देखू।
†1:11 11 (काइन) उत्पत्ति 4:1-8 केँ देखू।
‡1:11 11 (बिलाम) गनती 22-24; 31:16 केँ देखू।
§1:11 11 (कोरह) गनती 16:1-35 केँ देखू।
*1:12 12 वा, “ओ सभ अहाँ सभक प्रेम-भोज सभ मे समुद्र मे पाओल जाय वला ओहन विशाल खतरनाक पाथर सभ जकाँ अछि जे जहाज केँ नोकसान करैत अछि,”
†1:14 14 उत्पत्ति 5:18, 21-24 केँ देखू।